Tulsidas Ji ka Jeevan Parichay

“‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान। पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥” – तुलसीदास जी की, इन पंक्तियों में हमारे मानवी जीवन को कैसे जीना है, इसका पूरा सार समाया है। इनकी कविताएं इतनी सुंदर हैं कि आपको निश्चित तौर पे तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas Ka Jivan Parichay) जानने की इच्छा जाग उठेगी।

Tulsidas Ji ka Jeevan Parichay
Tulsidas Ji ka Jeevan Parichay

तुलसीदास का जीवन परिचय-Tulsidas Ka Jivan Parichay

तुलसीदास (Tulsidas) जी सोलहवीं शताब्दी के एक महान कवी और भगवान श्रीराम के परम भक्त थे। उन्होंने अनेक कविताएं और ग्रंथों की रचना की, और श्री राम जी की कथा लोगों को सुनाई। रामजी के आदर्श का अनुसरण करके न केवल खुदकी जिंदगी बनाई, बल्कि उन्होंने लिखी कविताएं और अन्य धर्म ग्रंथों के माध्यम से मानवजाति को प्रभु श्री रामजी ने दिखाए हुए राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। आइए हम तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas Ka Jivan Parichay) और उनसे जुड़ी पूरी जानकारी संक्षिप्त मे देखते है।

परिचय जानकारी
नाम तुलसीदास (रामबोला दुबे)
जन्म 1532 ई.
जन्मस्थान राजापुर, बांदा जिला, उत्तर प्रदेश
पिता आत्माराम दुबे
माँ हुलसी
गुरु नरसिंह दास
धर्म सरयू पारी ब्राह्मण हिंदू
उम्र मृत्यु के समय 112 साल/वर्ष
विवाह तिथि सम्वत 1583 ज्येष्ठ मास शुक्ल 13
विवाह रत्नावली पाठक
बेटा तारक (बाल्यावस्था में मृत्यु हो गई थी)
मृत्यु श्रावण शुक्ल तृतीया, संवत 1680, अस्सी घाट, वाराणसी
प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाएं रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, दोहावली, कवितावली, विनय पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि

तुलसीदास जी का जन्म-Birth of Tulsidas

तुलसीदास के जन्म की कथा कुछ विलक्षण है। उनके जन्म से ही पता चला कि यह बालक कोई साधारण बालक नहीं हैं। पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धार्यो सरीर।। इन पंक्तियों मे उनके जन्म के बारे मे बताया है।

तुलसीदास का जन्म 1532 ई. में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित बांदा जिले के राजापुर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। कुछ पंक्तियों के आधार पर विद्वानों मानना हैं कि उनका जन्म राजापुर में नहीं बल्कि ऐटा जिले में स्थित सोरो नामक एक स्थान पर हुआ था। इस बारे में थोड़े-से मतभेद हैं।

तुलसीदास जी का परिवार और बचपन-Tulsidas Ji's family and childhood

तुलसीदास जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माँ का नाम हुलसी था। उनके जन्म की कहानी बहुत दिलचस्प है। उनके पिता तुलसीदास जी के जन्म से पहले ही चिंतित थे। क्योंकि 9 मास का समय बीत चुका था और उनकी पत्नी के कोख से बच्चे ने जन्म नहीं लिया था।

उनके पिता का मानना था कि तुलसी का जन्म अशुभ काल में हुआ था। इसके अलावा, जन्म होते ही सभी बच्चे रोने लगते हैं। लेकिन यहाँ पर कुछ अलग ही हुआ, जन्म होते ही बच्चे के मुँह से राम नाम निकला। इसी संदर्भ में घरवालों ने उनका नाम रामबोला रखा। इसके सिवाय, जन्म होते ही बच्चे की मुँह में दांत थे। यह देखकर पिता आत्माराम जी घबरा गए।

उनके मन में शंका उत्पन्न हो गई, गलत तिथि और बच्चे का यह अद्भुत शारीरिक रूप देखकर वे हैरान हो गए। कुछ विपरीत होने वाला यह डर उन्हें सताने लगा और यह डर सच्चाई में तब्दील हो गया। जन्म देने के कुछ समय बाद उनकी माँ का देहांत हो गया।

यह आंच आपके उपर नहीं आनी चाहिए। इस डर की वजह से दुबे जी ने रामबोला को उनकी पत्नी की चुनीया नामक दासी के पास सौंप दिया। चुनिया उन्हें हरिपूर लेकर गई। इस बच्चे की शायद भगवान परीक्षा ले रहे थे। रामबोला की आयु पांच वर्ष की थी जब चुनिया का देहांत हो गया।

उनके एक ही सहारा था वह भी चला गया। पांच साल का बच्चा करें तो क्या करें। रामबोला गली-गली घर-घर जाकर भिक्षा मांगने लगा और अपने जीवन का गुजारा करने लगा।

तुलसीदास जी की शिक्षा-Teachings of Tulsidas

बड़े मुश्किल से उनका गुजारा हो रहा था। उनकी आयु 5-6 साल की होगी तब संत नरहरी दास जों कीं रामानंद के शिष्य थें, उन्होंने रामबोला को दत्तक ले लिया और उनकी परवरिश करना शुरू की। कहा जाता हैं कीं नरहरी दास जी को तुलसीदास जी से मिलने के लिये खुद भगवान शिव ने प्रेरित किया था।

शिक्षा के लिए गुरु अनन्ता नंदजी के प्रिय शिष्य श्री नरहर्यानंद जी ( नरहरि बाबा) के आश्रम भेज दिया ।नरसिंह बाबा के आश्रम में तुलसीदास (Tulasidas) 14 से 15 साल की उम्र तक सनातन,संस्कृति, धार्मिक ,वेदों तथा उपनिषदों, का ज्ञान प्राप्त किया ।तुलसीदास जी का नाम राम बोल से गोस्वामी तुलसीदास उनके गुरु नरसिंह दास जी ने रखा था।  गुरु नरहरी दास ने तुलसीदास जी को दीक्षा दी और रामबोला यह नाम बदलकर उनका नाम तुलसीदास रखा गया। आयोध्या में उनको शिक्षा देना आरंभ हुआ। कुछ समय बितने के बाद वह वराह क्षेत्र कीं ओर चले गये और वहाँ पर गुरु नरहरी दास ने उनको  रामायण का पाठ पढाया। इस पाठ के पढ़ने के बाद उनका रामायण के प्रति आदर निर्माण हुआ।

उसके बाद उनका वाराणसी में स्थानांतरण हुआ और वहाँ रहते हुए उन्होंने चार वेद, छः वेदांग ( इसमें वेद मंत्रों के उच्चारण के बारे में जानकारी दी गई हैं ) और ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान लिया। यह सब उन्हें उनके प्रथम गुरु नरहरी दास के परम मित्र शेष सनातनना ने सिखाया जों कीं उनके प्रथम गुरु नरहरी दास के परम मित्र थें।

तुलसीदास का विवाह-Marriage of Tulsidas

सम्वत 1583 में ज्येष्ठ मास की शुक्ल 13 को तुलसीदास जी का विवाह एक सुंदर कन्या के साथ हुआ। उनका नाम था " रत्नावली पाठक ", जो कि ब्राह्मण घराने से थी। शादी के कुछ सालों बाद रत्नावली ने एक बेटे को जन्म दिया, " जिसका नाम रखा गया था तारक "। । बेटा कुछ ही दिनों का मेहमान था, जन्म के कुछ समय बाद काफी कम उम्र में उसका देहांत हो गया।

तुलसीदास जी का अपनी पत्नी के प्रति बहुत अधिक लगाव था। तुलसीदास जी अपनी पत्नी के बिना कोई पल भी नहीं रह सकते थे। एक दिन उनकी पत्नी रत्नावली अपने भाई के साथ मायके चली आईं, जबकि बारिश का समय था। तुलसीदास जी मौसम की परवाह नहीं करते हुए बड़ी कठिनाईयों से झूंजकर, अपने ससुराल पहुंचे।

उनके यहां पहुंचने पर उनकी पत्नी ने उन्हें समझाया कि आप मेरे लिए इतनी कठिनाईयों का सामना करते हुए यहां तक पहुंचे, तो अगर आप भगवान के प्रति इसी भावना का दिखावा करते तो शायद आप अपने जीवन के सागर को पार करके चले जाते।

“लाज ना आवत आपको दौड़े आवहूं साथ

धिग धिग प्रभु आपको कैसे कहूं मैं नाथ”

तुलसीदास जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे वहां से चले गए। उन्होंने संसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग कर दिया और संन्यासी बन गए। तुलसीदास जी का संन्यासी और संसारिक जीवन प्रयाग, वाराणसी, चित्रकूट, और आयोध्या में गया।

तुलसीदास जी को हुए हनुमान और राम दर्शन-Tulsidas ji had the darshan of Hanuman and Ram

ऐसा कहा जाता है कि, भगवान राम और पवनपुत्र हनुमान जी ने तुलसीदास जी को प्रत्यक्ष सामने आकर दर्शन दिये थे। वे लोगों को रामजी की कथा सुनाते थे। उनके मन में प्रभु श्री राम को मिलने की चाह थी। पवनपुत्र हनुमान जी ने उनको साकार रूप में आकर उनको दर्शन दिया।

दर्शन होने के बाद तुलसीदास जी ने हनुमान जी से मुझे प्रभु श्री राम से मिलवाइए, मेरे मन में उनको मिलने की बहुत इच्छा है। ऐसा कहा। तब हनुमान जी ने उन्हें चित्रकूट पर्वत पर जाने की सलाह दी। वहाँ पर आपको प्रभु श्रीराम साक्षात दर्शन देंगे। उनके कहने पर वे चित्रकूट पर्वत पर रामघाट नामक एक जगह है। वहाँ पर रहने लगे।

” चित्रकूट के घाट पर भाई संतान की भीड़

तुलसीदास चंदन घिसत तिलक देते रघुवीर”

प्रभु श्री राम ने उन्हें दोनों बार दर्शन दिये। पहले समय रामजी उनके सामने एक राजकुमार के रूप में प्रकट हुए लेकिन तुलसीदास जी ने उनको पहचानने में गलती की, जब हनुमानजी ने बताया कि आपको साक्षात श्री रामजी ने दर्शन दिया तो तुलसी जी हताश हो गये। प्रभु मेरे सामने आए और मैं उन्हें पहचान न सका। फिर हनुमान जी बोले निराश मत हो। कल फिर एक बार प्रभु आपको दर्शन देंगे।

दूसरे दिन भगवान श्री राम बच्चे के रूप में उनके सामने प्रकट हो गये। इस बार भी वे रामजी को पहचानने में चूँक गये। लेकिन इस बार प्रभु श्री राम जी को पहचानने में हनुमानजी ने उनकी मदद की। तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम जी को साक्षात देखा। अपने हाथों से राम जी की माथे पर चंदन लगाया और उसके बाद रामजी अंतर्धान हो गये।

संत तुलसीदास की महत्वपूर्ण रचनाएँ-Important works of Saint Tulsidas

रामचरितमानस यह विश्वप्रसिद्ध ग्रंथ लिखने वाले महाकवि तुलसीदास की अन्य रचनायें भी हैं। इस 12 ग्रंथों के नाम हमने नीचे दिए हैं। इन सुंदर रचनाओं को आप जरूर पढ़ें।

  • रामलला नहक्षू
  • वैराग्य संदीपनी
  • रामाज्ञा प्रश्न
  • जानकी मंगल
  • रामचरितमानस
  • पार्वती मंगल
  • गीतावली
  • विनय पत्रिका
  • गीतावली
  • बरवै-रामायण
  • दोहावली
  • कवितावली

तुलसीदास जी की मृत्यु (Tulsidas ji’s death)

तुलसीदास जी अपने जीवन के अंतिम क्षणों में वाराणसी में रहते थे तुलसीदास जी के अंतिम क्षणों में वह भगवान राम के भक्ति में लीन रहते थे वाराणसी में 112 साल की उम्र में 1623 ईस्वी में हो गया।।

वहीं कुछ लोगों का मानना है कि तुलसीदास जी की मृत्यु 1680 ईस्वी में राम नाम जाप करते हुए हुई थी अपने अंतिम समय में तुलसीदास जी विनय पत्रिका नाम के पुस्तक लिखे थे। उनके जन्म की तरह उनकी मृत्यु तिथि के बारे में विद्वानों का विचार विभिन्न है।

FAQs

तुलसीदास जी का जन्म कब हुआ था?

तुलसीदास जी का जन्म 1511 ईस्वी (संवत् 1568 वि 0) कासगंज उत्तर प्रदेश भारत में हुआ था।

तुलसीदास जी के बचपन का क्या नाम था?

तुलसीदास जी के बचपन का नाम राम बोला था।

तुलसीदास जी की पत्नी का क्या नाम था?

तुलसीदास जी के पत्नी का नाम रत्नावली था।

तुलसीदास जी के पुत्र का क्या नाम था?

तुलसीदास जी के पुत्र का नाम तारक था।

तुलसीदास के गुरु कौन थे?

तुलसीदास जी के गुरु का नाम नरसिंह दास था।

तुलसीदास जी का विवाह किस उम्र में हुआ था?

तुलसीदास जी का विवाह 15 साल की उम्र में हुआ था।

तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी थी?

रामचरितमानस बैरागी संदीपन ए संकट मोचन कवितावली आदि तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएं थी।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना कब की थी?

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना 1631 में चैत मास की रामनवमी से लेकर 1633 में मार्ग शीर्ष के बीच की थी।

तुलसीदास के माता-पिता का क्या नाम था?

तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था।